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बुधवार, 22 जुलाई 2020

अकाल और उसके बाद by नागार्जुन

 
नागार्जुन हिंदी के प्रसिद्ध मार्क्सवादी कवि है। इनकी रचनाओं में व्यवस्था के विरोध के साथ ही शोषण के विरुद्ध प्रतिकार दिखाई देता है। 
सर्वसामान्य जीवन से जुडी नागार्जुन की यह कविता 'अकाल और उसके बाद' नयी दृष्टी से पूर्ण है । 
जनकवि नागार्जुन के काव्य में सर्व सामान्य की समस्याएं दिखाई देती है। प्रस्तुत कविता अकाल पर आधारित है। महज़ आठ पंक्तियों में कवि अकाल की स्थिति और अकाल के बाद की स्थिति का वर्णन करता है। 

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास 
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।

नागार्जुन की यह कविता एक और  अन्न का महत्व प्राणी जीवन में कितना अधिक है यह दर्शाने का प्रयास किया गया है, तो वहीं दूसरी ओर रोजमर्रा के शब्दों का प्रतीकात्मक रूप में प्रयोग कर एक नई दृष्टि देने का कार्य हुआ है।
चूल्हे का गुण होता है, जलना।किंतु अकाल में अनाज  होने के कारण चुल्हा निष्क्रिय हो गया है।चूल्हे की आग ठंडी पड़ चुकी है। उस आग पर पानी पड़ने से मानो यह प्रतीत हो रहा है कि चूल्हा भी रो रहा है। जिस चक्की में कभी अनाज पीसा जाता था। वह चक्की खामोश-उदास लग रही है। पेट भरने की अपेक्षा में इंसान के अलावा घर के सदस्य बन चुके जीव-जंतुओं का हाल भी बेहाल है। कुछ पाने की लालसा में घर की कानी कुत्तिया चूल्हे और चक्की के पास सोती है। दीवारों पर छिपकलियों की गश्त बढ़ जाती है। भूख के मारे चूहे शिकस्त हो जाते हैं।
भारत में 1877-1946 के बीच पड़े अकाल की ...
कई दिन बीतने के बाद अकाल का सन्नाटा घर से हट जाता है। घर में दाने आते हैं, अनाज आता है चूल्हे में फिर एक बार आग जलती है, जिसका धुंआ आंगन के ऊपर कई दिनों के बाद छा जाता है। चूल्हे में जलती आग जीवन की सक्रियता का प्रतिक है। भोजन से पेट भरने के उपरांत प्राप्त तृप्ति की लालसा में घर भर के सभी प्राणियों की आंखें खुशियों से चमक उठती है। दुर्दिन हटकर जीवन में फिर एक बार सक्रियता लौटती है। घर को इस नई आशा भरी सक्रियता को देख कौवा भी अपनी पाखें खुजलाता है।
इस कविता को और बारीकी से देखने  के बाद इसके प्रत्येक जीव को प्रतिक के रूप में भी समझा जा सकता है।कविता में चूल्हा पुल्लिंग शब्द है, जिसे पुरुष के अर्थ में लिया जा सकता है। अकाल की स्थिति ही कुछ ऐसी होती हैजहाँ सर्वसामान्य के लिए हाथ के लिए काम शेष नहीं रहता। आम तौर पर परिवार के आर्थिक आधार स्तम्भ के रूप में घर के पुरुष को देखा जा सकता है। भारतीय परिवेश में पुरुष का रोना शोभनीय नहीं माना जाता। पर अकाल से बदहाल हो यह पुरुष रूपी चूल्हा भी रो रहा है।
चक्की स्त्रीलिंग शब्द हैजो संभवतः घर की स्त्री के अर्थ में है।अपने दायित्व का निर्वाह करते और अकाल की की स्थिति का भली-भांति आकलन होने के कारन वह रो नहीं रही। मात्र वह ख़ामोश हैउदास है।कानी कुत्तिया से संदर्भ कदाचित घर के बूढ़े-बुजुर्गों से हो सकता है। जो वृद्धत्व के कारन पहले ही मजबूर है और अकाल में भूख से लाचार।छिपकलीयां और चूहे का तात्पर्य घर की लड़कियां और लड़कों सेहो सकता है। क्योंकि यह शब्द भी क्रमशः स्त्रीलिंगी और पुलिंगी है। भूख ने इनकी गतिविधियों को सीमित कर दिया है। तो अंत में जिस कौवे का उल्लेख हैवह भारतीय परिवेश में घर आने वाले मेहमानों की सूचना देता है। अतः कौवे का पाँखे खुजलाना जीवन चक्र के नियमित होने कालोगों के आवाजाही का प्रतिक है। 

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