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हिंदी के ऐतिहासिक उपन्यासों में मूल्यविधान

मनुष्य जीवन की प्राप्त सार्थक उपलब्धियों में चिरंतन,शाश्वत और सर्वोपरि है-मूल्य। किंतु कालानुरूप मूल्यों में भी परिवर्तन हो रहा है। वस्तुतः मूल्य जैसी धारणा बाजार व्यवस्था में विनिमय से संबंधित मानी जाती है। आधुनिक संदर्भ में मूल्य को उपयोगिता,विनिमयता,सामाजिक हित या सुख से संबंधित माना गया है।व्यक्ति या वस्तु के वह गुण जिसके कारण उसका महत्व,सम्मान होता हैं,मूल्य कहलाते है। मूल्यों का स्थान भारतीय समाज के नियामक के रूप में रहा है। स्वस्थ समाज, परिवार एवं व्यक्तित्व के निर्माण में योगदान देनेवाले मूल्य मनुष्य के सहचर हैं। मूल्य स्वयं में अमूल्य होते है और मनुष्य जीवन को भी मूल्यवान बनाते है। मूल्य को मनुष्य के संबंधों का आधार मानते हुए डॉ.धर्मपाल मैनी मूल्य की परिभाषा में कहते है- किसी देश, काल और परिस्थिति में जनसामान्य की उदात्त मान्यताएं ही मानव मूल्य है।1
    आज हमारा देश सूचना, प्रौद्योगिकी के साथ विकसित देशों की कतार में अपना स्थान बनाने अग्रेसर हो रहा है। इस हेतु प्रेरणारूपी हमारी संस्कृति आज भी दायज रूप में हमें प्रगल्भता,बौद्धिकता दे रही है। क्योंकि मनुष्य एवं समाज के विकास का आधार भौतिक संस्कृति में न होकर उनके द्वारा निर्वाहन किए जा रहे जीवन मूल्यों में है। इन मूल्यों के प्रकटीकरण में साहित्य की उपादेयता भी श्लाघनीय है। व्यक्ति और समाज का दर्पण माना गया साहित्य तत्कालीन युग और समाज के मूल्यों को अपनाता है। साहित्यकार अपनी रचनाओं में युग के मूल्यों की गहराई को प्रकट करने का प्रयास करता है। अतः सच्चा साहित्यकार वही माना जा सकता है जो यथार्थ मूल्यों को प्रकट करें। ऐतिहासिक उपन्यास जहॉ इतिहास के परिप्रेक्ष्य में जीवन के पुनर्निर्माण पर जोर देते है,वहीं अतीत की सहायता से मानवीय मूल्यों का चिकित्सक एवं गहन अध्ययन भी करते है। शोषण पर आधारित आज की वर्तमान व्यवस्था में जब मानवीय मूल्यों पर से विश्वास डगमगाने लगता है तब इतिहास ही मार्गदर्शक और प्रेरक के रूप में सामने आता है।
    हिंदी के ऐतिहासिक उपन्यासों में मूल्य संबंधी अवधारणा को जांचने से पूर्व इन उपन्यासों में चित्रित इतिहास को परखना भी आवश्यक हो जाता है। इतिहास समाज सादृश्य होता है, अतः वह मूल्यों का परिचायक भी है। इसी इतिहास का आधार लेते हुए वर्तमान जीवन मूल्यों के अन्वेषण, उद्घाटन का प्रयास ऐतिहासिक उपन्यासों में किया जाता है। प्रसंगानुरूप वर्तमान जीवन की घुटन,संघर्ष की प्रस्तुति भी आज हिंदी के ऐतिहासिक उपन्यासों में दिखाई देती है। ऐसे में विचार एवं परंपराओं पर सवाल उठाते कुछ उपन्यासों में मूल्य संबंधि नकारात्मक वृत्ति एवं इसके परिणामस्वरूप मूल्यहीनता का चित्र उभरा है।
    ऐतिहासिक उपन्यास समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य की भावनाओं से ओतप्रोत होते है। तथा उपन्यासकार का लक्ष्य सामाजिक यथार्थ एवं ऐतिहासिक वातावरण के समन्वय को दर्शाना होता है। समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व निभाने के साथ अपने उपन्यास में इतिहास के अस्तित्व की रक्षा का प्रयास उपन्यासकार करता है। आज युद्ध से पीड़ित इस वातावरण में मानव को मानव के रूप में लाने की चेष्टा ऐतिहासिक उपन्यासों के माध्यम से हो सकती है। ऐतिहासिक उपन्यासों के द्वारा काल-कवलित हो चुके मूल्यों का पुनर्निर्माण संभव है। मनुष्य के लिए हजारों वर्षों से पथप्रदर्शक बने मूल्यों का उद्घाटन तथा जीवन के शाश्वत सत्य एवं मूल्यों की अभिव्यक्ति ऐतिहासिक उपन्यासों के माध्यम से हो सकती है। इसी तरह स्थान एवं कालनिरपेक्ष मूल्यों को भी इन उपन्यासों से जाना जा सकता है।
    मूल्यों का निर्धारण और उनमें होनेवाला परिवर्तन सामाजिक, आर्थिक आधार पर होता है। वर्तमान साहित्य में कहीं टूटते हुए तो कहीं परंपरागत मूल्य देखे जा सकते है। हिंदी के ऐतिहासिक उपन्यासों में सामाजिक मूल्य, आर्थिक मूल्य, धार्मिक मूल्य, राष्ट्रीय चेतना, राजनीतिक मूल्य, साहित्यिक मूल्य, आध्यात्मिक मूल्य जो त्याग एवं तपोमय जीवन के साथ विश्वकल्याण तथा सौहार्द्र की भावना से पूर्ण है आदि को महत्व मिला है। इन उपन्यासों में मूल्यों को विविध रूपों में देखा जा सकता है-विश्वकल्याण, व्यक्तिसापेक्ष आदर्श गुण, सामाजिक मूल्य में वर्णव्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, संस्कार, पति-पत्नी का पारिवारिक जीवन जो वासनारहित प्रेमपरक मूल्य से भरा हो, नारी के प्रति भाव, शिक्षा, राजा का व्यक्तित्व-जो सद्गुणों से भरा हो, राष्ट्रीय चेतना के अंतर्गत राष्ट्र की रक्षा, राष्ट्र प्रेम, आचारात्मक एवं व्यवहारात्मक मूल्य के अंतर्गत न्यायपूर्ण, शुद्ध एवं पवित्र आचरण, तो कभी विश्व कल्याणपरक व्यवस्था के रूप में मुल्यों को उजागर किया जाता है।
    सबसे बड़ा मूल्य है - लोककल्याण की भावना, मानवता का आदर करना। हजारीप्रसाद द्विवेदी के उपन्यास 'बाणभट्ट की आत्मकथा' में नौकाविहार के समय प्रतिपक्षियों के युद्ध समय निपुनिका को बचाने प्रयत्नरत बाण को स्वयं निपुणिका भट्टिनी को बचाने कहती है,जो उसके मानवता पक्ष को दर्शाता है।बाण का स्त्री वेश में भट्टिनी का उद्धार करना,उसका अभिभावक बनना, महामाया का गान इन सब में मानवता का स्वर है। जिसका लक्ष्य है-लोककल्याण। अघोरभैरव के शांतिपाठ का सार भी मानवता धर्म का परिचायक है। भट्टिनी की रक्षा में देशवीरों का शौर्य, कुमार कृष्णवर्द्धन का भट्ट से आर्यावत की रक्षा का आह्वान देशभक्ति को दर्शाता है। बाण का नारी को देवमंदिर मानना उसके द्वारा नारी के प्रति सम्मान को द्योतक है। उपन्यास 'चारूचंद्रलेख' में स्त्रियों, बालकों, मंदिरों, देशरक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगानेवाले दीनदलित, दरिद्रों के लिए स्नेहभाव से पूर्ण विद्याधर भट्ट मानवतावाद के उद्घोषक प्रतित होते है। तो रानी चंद्रलेखा का चरित्र करुणा, विनय,  मैत्री, मानवता से पूर्ण है। चंद्रलेखा का प्रजा कल्याण हेतु सजग रहना उसकी विश्वबंधुत्व की कामना को उजागर करता है। वहीं सीदीमौला एकता की भावना का स्त्रोत है। राजा सातवाहन,धीर शर्मा का व्याख्यान,बोधा के प्रयास तथा तुर्कों के आक्रमन के समय की स्थिति उपन्यास में देशभक्ति जैसी मूल्यों की स्थापना करती है। उपन्यास 'पुनर्नवा' के आ.देवरात द्वारा की गयी सेवा मानव प्रेम का सार है। सम्राट समुद्रगुप्त देशभक्ति, वीरता के प्रतिक है। परदुखकातरता जैसा मानवीय गुण 'अनामदास का पोथा' उपन्यास में जगह-जगह दिखाई देता है।
    यशपाल का ऐतिहासिक उपन्यास 'दिव्या' सामाजिक मूल्यों को अंकित करता है। आ.रूद्रधीर जातिगत संस्कारों से निगमित वर्णव्यवस्था के पक्षधर है। द्विजकन्या होकर भी दिव्या का नारीत्व का चरम भाव-मातृत्व अबाधित रखने दासत्व स्वीकारना,अपने शिशु के लिए वेश्या बनना उसके नारीत्व को गरिमा देता है।हीनकुल पृथुसेन का अपने गण की स्वतंत्रता हेतु युद्धभूमी में वीरता दिखाना राष्ट्रीय चेतना का प्रतिक है।यवनराज मिलिंद का दासों को बंधनमुक्त कर उन्हें स्वतंत्रता तथा उनके भरण-पोषण हेतु यथेष्ट द्रव्य देना मानवता का प्रतिक है। हिंसा और युद्ध के विपरित विश्वशांति का संदेश देनेवालाष्अमिताष् उपन्यास भी विशिष्ट है। 'किसी से छीनो मत,किसी को डराओ मत,किसी को मारो मत' वाक्य समानता,सद्भाव, मानवता जैसे मूल्यों को दर्शाता है।
    मोहनदास नैमिषराय का उपन्यास 'वीरांगणा झलकारी बाई' दलितों में व्याप्त राष्ट्रप्रेम,वीरता,सर्वस्व त्याग जैसे मूल्यों पर आधारित है।रांगेय राघव के उपन्यासों में भी मूल्यों का विशेष स्थान है। 'देवकी का बेटा' उपन्यास में कृष्ण का चरित्र मानव के रूप चित्रित किया गया है,जो राजतंत्र या एकतंत्र के स्थान पर गणतंत्र को प्रधानता देता है।उपन्यास ष्वसुमतिष् शांति,करुणा जैसे मूल्यों पर आधारित है। 'यशोधरा जीत गयी',  'लोई का ताना' , 'रत्ना की बात',  'आंधी की नींवें' नारी सम्मान को मूल्य के रूप में स्वीकार कर प्रचलित समाज में भी नारी की विजय की गाथा को प्रस्तुत करते है।
    ऐतिहासिक उपन्यास तत्कालीन सामाजिक विसंगतियों को अस्वीकार कर स्थापित मूल्यों को नकारने का धाड़स दिखाते है,तो नवीन मुल्यों की स्थापना का भी प्रयास करते है।ऐतिहासिक संदर्भ में मानवचरित्र के विविध पक्षों के चित्रण तथा उपर्युक्त प्रेम,वीरता,दया,करुणा,राष्ट्रप्रेम जैसे शाश्वत मूल्यों की खोज ऐतिहासिक उपन्यास अनायास ही करते है।
    आज भले ही आधुनिक मूल्यों के प्रभाव में ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना हो रहा है,पर भारतीय संस्कृति-परंपरा की दृष्टि से मूल्यों की व्यवस्था जिस चतुर्वर्ग फलप्राप्ति पर आधारित रह चुकी है,उन्हें भी यथास्थान उपन्यासों में देखा जा सकता है।जिसके अनुसार धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष को मानव मूल्य के रूप में स्वीकारा गया है।जहॉ तक हिंदी साहित्य में ऐतिहासिक उपन्यासों के प्रणयन का प्रश्न है,वह राष्ट्रीय जागरण तथा स्वाधीनता अांदोलन के फलस्वरूप हुआ।अतः राष्ट्रीय चेतना से जुड़े मूल्यों का प्रकटीकरण कई ऐतिहासिक उपन्यासों में हुआ है।
    किसी विशिष्ट परिवेश,कालखंड में व्यक्ति तथा समाज के नैतिक आचरण को समझने के लिए ऐतिहासिक उपन्यास सहायक है।ऐतिहासिक उपन्यासों में चित्रित किवदंतियां,लोकोक्तियां,परंपरा जिसमें हमारी प्राचीन सभ्यता-संस्कृति की स्मृतियां है,इन मूल्यों की खोज में सहायक होती है।वास्तव में ऐतिहासिक उपन्यासों का ढांचा इन मूल्यों पर ही खड़ा होता है।

सारांश :-
    आधुनिकता और औद्योगिकरण के चलते सम्मुख उभरी कई विषम परिस्थितियों में से एक आर्थिक संकट की इस स्थिति में मूल्यों की ओर से मनुष्य विमुख हो रहा है।जिसके कारण उसकी रचनाएं,जिन्हें वह स्वयं अपने अनुभवों-धारणाओं के माध्यम से प्रकट करता है,उलझी हुई,खंड़ित प्रतित होती है।अतः मानवीय मूल्यों के इस संक्रमण काल में पुनः मूल्य प्रासंगिक बन गए है।आज राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर की हिंसक घटनाएं स्पष्ट करती है कि मानव अपनी सभ्यता-संस्कृति से दूर जा रहा है।उसमें उपजी बर्बरता,पाशविकता सृष्टी को विनाश की ओर ले जा रही है।मूल्यों के अभाव में उभरनेवाला भीषण संकट छुपा है विकृत मानसिकता में।अतः मानवता के पुनरुत्थान हेतु मूल्यों का अध्ययन आवश्यक है,जो धर्म स्वरूप है,नीति स्वरूप है,समाज में नैतिकता की पुनर्स्थापना हेतु आवश्यक है और हिंदी का ऐतिहासिक उपन्यास साहित्य इस दिशा में अग्रेसर है।एक ओर भारतीय परंपरा,आदर्श तथा संस्कृति को उजागर करने तो दूसरी ओर नए मूल्यों की स्थापना हेतु हिंदी साहित्य की विधा प्रयत्नरत है।

संदर्भ सूचि :-
1.मानव मूल्य व्याख्या कोश - सं.डॉ.धर्मपाल मैनी
2.साठोत्तरी कहानी में मानवीय मूल्य - विनीता अरोरा
3.भारतीय संस्कृति में मानव मूल्य और लोककल्याण - सुकेश शर्मा
4.हिंदी उपन्यासों का मूल्यपरक विवेचन - डॉ.सविता चोखोबा किर्ते

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