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साहित्य का स्वरूप एवं परिभाषा

             साहित्य शब्द का विग्रह दो तरह से किया जा सकता है।  सहित = स+हित = सहभाव, अर्थात हित का साथ होना ही साहित्य है।  साहित्य शब्द अंग्रेजी के Literature का पर्यायी है।  जिसकी उत्पत्ति लैटिन शब्द Letter से हुई है।

साहित्य का स्वरूप 
              भाषा के माध्यम से अपने अंतरंग की अनुभूति, अभिव्यक्ति करानेवाली ललित कला 'काव्य' अथवा 'साहित्य' कहलाती है। (ललित कला अथवा अँग्रेजी का Fine Art शब्द उस कला के लिए प्रयुक्त होता है, जिसका आधार सौंदर्य या सुकुमारता है। जैसे- चित्रकला, नृत्य, शिल्पकला, वास्तुकला, संगीत आदि। किन्तु आधुनिक धारणाओं के साथ ललित कला में अपेक्षित सौन्दर्यभाव, रमणीयता का भाव धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है। अत: हर ललित कला सौंदर्य की निर्मिति करनेवाली हो, यह संभव नहीं। यथार्थ के अंकन के साथ 'सौंदर्य' इस शब्द का बदलता अर्थ हम देख रहे है।) साहित्य की व्यूत्पति को ध्यान में रखकर इस शब्द के अनेक अर्थ प्रस्तुत किए गए है। 'यत' प्रत्यय के योग से साहित्य शब्द की निर्मिति हुई है। शब्द और अर्थ का सहभाव ही साहित्य है। कुछ विद्वानों के अनुसार हितकारक रचना का नाम साहित्य है।
             साहित्य शब्द का प्रयोग 7-8 वीं शताब्दी से मिलता है। इससे पूर्व साहित्य शब्द के लिए काव्य शब्द का प्रयोग होता था। भाषाविज्ञान का यह नियम है, कि जब एक ही अर्थ में दो शब्दों का प्रयोग होता है, तो उनमें से एक अर्थ संकुचित या परिवर्तित होता है। संस्कृत में जब एक ही अर्थ में साहित्य और काव्य शब्द का प्रयोग होने लगा, तो धीरे-धीरे काव्य शब्द का अर्थ संकुचित होने लगा। आज काव्य का अर्थ केवल कविता है और साहित्य शब्द को व्यापक अर्थ में लिया जाता है। साहित्य का तात्पर्य अब कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, आत्मकथा अर्थात गद्य और पद्य की सभी विधाओं से है।
            काव्य के स्वरूप को लेकर उसे परिभाषित करने का प्रयास इ.स.पूर्व 200 से अब तक हो रहा है। विविध विद्वानों ने साहित्य के लक्षण प्रस्तुत करते हुए उसे परिभाषित करने का प्रयास किया। किंतु इन प्रयासों में कहीं अतिव्याप्ति, तो कहीं अव्याप्ति का दोष है। काव्य को परिभाषित करते समय यह विद्वान अपने समकालीन  साहित्य तथा साहित्य विषयक धारणाओं से प्रभवित रहे है।
            संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी के विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं का विवेचन निम्नानुसार प्रस्तुत किया जा सकता है -
अ. संस्कृत विद्वानों द्वारा प्रस्तुत साहित्य की परिभाषाएं -
            संस्कृत साहित्य में साहित्य स्वरूप विश्लेषण का प्रारंभ आचार्य भरतमुनि के 'नाट्यशास्त्र' से माना जाता है। यद्यपि नाट्यशास्त्र का प्रमुख्य विवेच्य विषय नाट्य है, लेकिन प्रसंगवश साहित्य स्वरूप का विश्लेषण भी इसमें हुआ है।
             साहित्य स्वरूप को स्वतंत्र रूप से विश्लेषित करने का प्रथम प्रयास 'अग्निपुरान' में देखा जा सकता हे। जिसके रचयिता वेदव्यास जी है।

1. आचार्य भामह - 
            अपने ग्रंथ 'काव्यालंकार' में साहित्य की परिभाषा देते हुए कहते है -
'शब्दार्थो सहितौ काव्यम्'
            भामह प्रथम आचार्य है, जिन्होंने काव्य लक्षण देते हुए कहा है कि शब्द और अर्थ का सहभाव ही काव्य है। काव्य के लिए शब्द और अर्थ की संगति आवश्यक है। शब्द दो प्रकार के होते है - सार्थक और निरर्थक। काव्य में सार्थक शब्दों का ही महत्व होता है। क्योंकि सार्थक शब्दों में ही अर्थ प्रतिति कराने की क्षमता होती है।
             किंतु भामह के इस मत आक्षेप लेते हुए कहा जाता है कि शब्द और अर्थ का सहभाव तो शास्त्रों की पुस्तकों में भी होता है। मात्र उसे हम साहित्य की श्रेणी में नहीं रखते।

2 . आचार्य दंडी -
'शरीर तावद् इष्टार्थ व्यावच्छिन पदावली।'
              अपने ग्रंथ 'काव्यादर्श' में काव्य को परिभाषित करते हुए दंडी ने कहा है कि काव्य का शरीर तो इष्ट अर्थ से युक्त पदावली होता है। यहां इष्टार्थ का अर्थ हैं - अभिप्रेत अर्थ, अपेक्षित अर्थ। इस अर्थ को दंडी ने काव्य न मानकर काव्य का शरीर माना है।
              दंडी के इस मत पर भी आक्षेप लेते हुए कहा गया है कि दंडी ने यहां काव्य के शरीर के बारे में बताया है। मात्र आत्मा के संबंध में नहीं।

3. आचार्य वामन -
 'रीतिरात्मा काव्यस्य् विशिष्ट पदावलिः रीति।'
                 आचार्य वामन के ग्रंथ 'काव्यालंकार सूत्र' के अनुसार काव्य की आत्मा रीति होती है और विशिष्ट पदावलि ही रीति है। वामन ने इस परिभाषा में विशिष्ट पदरचना को काव्य का शरीर माना है एवं रीति को काव्य की आत्मा माना है।
              वामन के इस मत पर आक्षेप लेते हुए कहा गया है कि उन्होंने रीति को काव्य की आत्मा माना है और पदरचना भी। जब कि पदरचना काव्य का बाहय पक्ष मात्र है,अर्थात शरीर है।  तो वह आत्मा कैसे हुई ?

4. आचार्य विश्वनाथ -
'वाक्यम् रसात्मकम् काव्यम्'    अथवा 
'वाक्यं रसात्मकें काव्यं'
                आचार्य विश्वनाथ अपने ग्रंथ 'साहित्यदर्पन' में कहते है - रसयुक्त वाक्य ही काव्य है। यहां वाक्य का तात्पर्य उन शब्दों से है, जो अर्थयुक्त हो। अर्थात सार्थक शब्द ही से वाक्य बनते है। उनके 'रसात्मक' शब्द में काव्य की अनुभूति है।

5. आचार्य मम्मट -
'तद्दोषौ शब्दार्थों सगुणावलंकृति पुनःक्यापि।'
                'काव्यप्रकाश' इस ग्रंथ में आचार्य मम्मट कहते है कि दोषरहित और गुणसहित शब्दार्थ ही काव्य है, जो कभी-कभी अलंकारों से रहित भी होते है।

6. पंडित जगन्नाथ -
'रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्द काव्यम्'
             'रसगंगाधर' इस ग्रंथ में जगन्नाथ के द्वारा दी गई व्याख्या कुछ इस प्रकार है - रमणीय अर्थ का प्रतिपादक शब्द ही काव्य है। यहां रमणीय का अर्थ है, आनंद प्रकट करनेवाला। पंडित जगन्नाथ 'रमणीय' का अर्थ चमत्कार पूर्ण आल्हाद् मानते है।
              मात्र जगन्नाथ के मत पर भी आक्षेप लेते हुए कहा गया कि काव्य का निर्माण मात्र रमणीयता को लेकर ही नहीं होता। उसमें दुख का भी समावेश होता है। 
               इस प्रकार  संस्कृत के विद्वानों द्वारा प्रस्तुत काव्य की कुछ परिभाषाओं को देखा जा सकता है।

आ. हिंदी के विद्वानों द्वारा प्रस्तुत साहित्य की परिभाषा
              हिंदी के विद्वानों के अनुसार लक्षण ग्रंथों के निर्माण की परंपरा आचार्य केशवदास से मानी जाती है। अतः हिंदी साहित्य शास्त्र का प्रारंभ उन्हीं से माना जायेगा । आदिकाल में काव्य अंगों का भले ही गंभीर अध्ययन  ना हुआ हो, लेकिन कवियों ने काव्य प्रयोजन, काव्य हेतु, भाषा प्रयोग आदि के लक्षण प्रस्तुत किए गए हैं।
                 भक्तिकाल के कवियों की उक्तियों में भी साहित्य के लक्षण प्राप्त होती है। जैसे कबीर कहते हैं -
'तुम जीन जानो गीत है, यह नीज ब्रह्म विचार।'
                वैसे साहित्य को परिभाषित करने का विचार रीतिकाल में प्रखरता से होने लगा। किन्तु मध्यकालीन आचार्यों द्वारा प्रस्तुत परिभाषाओं में मौलिक चिंतन का अभाव रहा। वैसे संस्कृत के किसी-न-किसी आचार्य का वह अनुवाद करते रहे। इनमें केशवदास, चिंतामणि त्रिपाठी, कुलपति मिश्र, कवि ठाकुर आदि है।
                 संस्कृत तथा पाश्चात्य साहित्य शास्त्र में प्राप्त साहित्य परिभाषाओं समान हिंदी विद्वानों ने भी विशिष्ट मत या विचार को सामने रख कर साहित्य परिभाषा प्रस्तुत की। जिन्हें निम्नानुसार देखा जा सकता है।
१. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
                जो प्रभावशाली रचना पाठक और श्रोता के मन पर आनंददाई प्रभाव डालती है, कविता कहलाती है। इनके अनुसार काव्य में विलक्षणता होती है, जिसमें आनंद निर्माण करने की क्षमता होती है।

२. आचार्य रामचंद्र शुक्ल
                 साहित्य की परिभाषा के संदर्भ में इनके दो मत देखें जा सकते है।
i. जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञान दशा कहलाती है, उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है। ह्रदय की मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है, उसे कविता कहते है।
ii. कविता जीवन और जगत की अभिव्यक्ति है।

३. आचार्य श्यामसुंदर दास
           काव्य वह है जो हृदय में अलौकिक आनंद या चमत्कार की सृष्टि करें।

४. जयशंकर प्रसाद
         काव्य आत्मा की संकल्पनात्मक अनुभूति है, जिसका संबंध विश्लेषण, विकल्प या विज्ञान से नहीं होता। वह एक रचनात्मक ज्ञानधारा है।

५. डॉ. नगेंद्र
           सरस शब्दार्थ का नाम काव्य है।

इ. पाश्चात्य विद्वानों द्वारा दी प्रस्तुत साहित्य की परिभाषा
          पाश्चात्य साहित्य शास्त्र का प्रारंभ प्लेटो से माना जाता है। तत्कालीन साहित्य और साहित्य विषयक धारणाओं के परिप्रेक्ष्य में इन परिभाषाओं को समझा जा सकता है।
१. प्लेटो
            साहित्य अज्ञान जन्य होता है। साहित्य जीवन से दूर होता है, क्योंकि भौतिक पदार्थ स्वयं ही सत्य की अनुकृति है। फिर साहित्य तो भौतिक पदार्थों की अनुकृति होता है। अतः वह अनुकरण का अनुकरण होता है। साहित्य शूद्र मानवीय वासनाओं से उत्पन्न होता है और शूद्र वासनाओं को उभारता है। अतः वह हानिकारक होता है।
             प्लेटो की साहित्य के स्वरूप के संबंध में यह धारणा अपने युगीन परिस्थिति और साहित्य को सामने रखकर तैयार हुई थी।  
२. अरस्तु
           Poetry is an imitation of nature through medium of language. 
         अर्थात साहित्य भाषा के माध्यम से प्रकृति का अनुकरण है। प्लेटो के शिष्य अरस्तू ने साहित्य को राजनीति तथा नीतिशास्त्र की दृष्टि से न देख कर सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से उसका विवेचन किया है।
           अरस्तु की इस परिभाषा में अनुकरण से तात्पर्य मात्र नकल करना नहीं; बल्कि पुनः सृजन है। इस दृष्टि से अरस्तु के अनुसार "साहित्य जीवन और जगत का कलात्मक और भावनात्मक पुनःसृजन है।"

३. विलियम वर्ड्सवर्थ
              Poetry is a spontaneous overflow of powerful feeling it takes its origin from emotion. 
            स्वच्छंदतावादी कवि विलियम्स वर्ड्सवर्थ के अनुसार प्रबल मनोवेगों का सहज उच्छृंखलन कविता है। अर्थात भावना का सहज उद्रेक ही कविता है। वर्ड्सवर्थ कविता में सहजता को महत्व देते है। इसमें भावनाएं जब लबालब भर जाती है, तो उसी आधार पर वह सहज प्रकट होती है।

४. सैम्युअल टेलर कॉलरिज
                Poetry is the best word in best order. 
               सर्वोत्तम शब्दों का सर्वोत्तम विधान ही कविता है।

५. पी.वी शैली
             Poetry is the record of the best and happiest movement of the happiest and best minds.
             सुखी और मन को आनंद देने वाले क्षणों में सुखद मन के आधार पर प्रकट हुई रचना कविता है।

६. मैथ्यू अर्नाल्ड
               Poetry is a criticism of life. 
             कविता अपने मूल रूप में जीवन की आलोचना है।
           उपर्युक्त परिभाषाओं को देखकर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है, कि यह सभी परिभाषाएं विशिष्ट साहित्य, विशिष्ट मत तथा मतवाद से प्रेरित है।

8 टिप्‍पणियां:

  1. yahi padhane ka sahi tarika hai kyoki chatra syam adhyayan karana sikha jate hai

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  2. मैं ओयबान बोयपाई है दिनांक 03/07/2019 में शामिल करने के लिए तैयार है

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  3. बहुत सुंदर , सरल और सुरुचिपूर्ण।

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  4. भाषा के माध्यम से अपने अंतरंग की अनुभूति, अभिव्यक्ति करानेवाली ललित कला 'काव्य' अथवा 'साहित्य' कहलाती है।
    अब मेरे जैसे के लिए फिर एक प्रश्न उपस्थित हुआ ललित कला क्या
    जब ललित कला का मतलब समझेंगे तब इस परिभाषा को समझ पाएंगे

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    1. धन्यवाद आपके अभिप्राय के लिए, इसे में संशोधित किए देती हूँ ।

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  5. धन्यवाद, ma'am university of Mumbai के एक autonomous college - BHAVANS COLLEGE - मे BACHELOR OF ARTS की पढ़ाई कर रहा हूँ। ASSIGNMENT बनाने मे यह मददगार होगा 😃

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    1. हिन्दी के प्रति रुचि के लिए सर्वप्रथम आप धन्यवाद के पात्र है।
      https://www.youtube.com/watch?v=4DRGm9T_UW0&t=354s
      https://www.youtube.com/watch?v=EGUsH7KtTKc&t=875s
      आप इन video का भी प्रयोग करें.
      आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनायें ।

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  6. बहुत-बहुत धन्यवाद हिंदी से क्या तात्पर्य है उसको लेकर के हमने इस टॉपिक से शब्द को चुना जो हमको अच्छा लगा आपको बहुत-बहुत धन्यवाद

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