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हिंदी सिनेमा में हिंदी का अस्तित्व

 बीज शब्द -  
हिंदी भाषा, हिंदी फिल्में,  प्रांतीय भाषा, विदेशी भाषा, उदारीकरण,  विश्व बाजारवाद, बंबईया भाषा

आलेख -
भारतीय फिल्में जहां अपने सौ साल पूरे कर चुकी है, वहीं बॉलीवुड के नाम से जानी जानेवाली हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री, जो अधिकतर मुंबई केंद्रित होने के कारण अपने पुराने नाम ’बंबई’ से बॉलीवुड के नाम से जाना गया है, भारत की अधिकतर फिल्मों का निर्माण क्षेत्र है। 1931 की पहली ध्वनि-चित्र मुद्रित फिल्म ’आलम आरा’ से अब तक हिंदी फिल्में अपने विषय, प्रस्तुतीकरण की तकनीक, ध्वनि-चित्र संयोजन, भाषा, गीतों के कई पड़ावों को पार कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना पर्चम लहरा रही है। हिंदी फिल्मों के इस बदलते रूप पर वैश्वीकरण  का प्रभाव सहज दृष्टिगोचर  होता है। जिसके चलते हिंदी सिनेमा आज केवल प्रेम, परिवार, आपसी संबंधों की उलझन भरे बंधन से मुक्त हो विज्ञान, फैन्टेसी तथा गहन सामाजिक विषयों में प्रवेश कर समांतर सिनेमा की ओर मूड रहा है।
1990 के पश्चात्  आर्थिक उदारीकरण एवं विश्व बाजारवाद की संकल्पना ने हिंदी फिल्मों के ढांचे में अमूल परिवर्तन किए। बडी बजट की फिल्मों ने नायक-नायिका को ’स्टारडम’ से परिचित करवाया। बडी बजट की फिल्मों ने शेअर बाजार को प्रभावित किया, जिसके चलते व्यापार-उद्यम, विपणन, विज्ञापन जैसे क्षेत्रों पर भी हिंदी फिल्में असर दिखाने लगी। प्रवासी भारतीयों की बढती दर्शक संख्या के कारण आज विश्व के 90 से ज्यादा देशों में हिंदी सिनेमा अपना जलवा दिखा रही है। जिसके चलते 20जी सेंचुरी फॉक्स, सोनी पिक्चर्स, वॉल्ट डिज्नी पिक्चर्स, वॉर्नर ब्रदर्स जैसी विदेशी कंपनियां भी भारतीय फिल्म बाजार में प्रवेश कर चुकी है। केंद्रीय फिल्म प्रसारण बोर्ड द्वारा 2017 की कुल भारतीय फिल्मों में अर्थात 1986 फिल्मों में हिंदी भाषा  की फिल्मों की संख्या सर्वाधिक अर्थात 364 थी, जो कुल के 18 प्रतिशत  से भी अधिक थी।
 एक ओर राष्ट्रभाषा -राजभाषा  के रूप में जन प्रिय हो चुकी हिंदी वैश्विक पटल पर अपनी छाप छोड चुकी है, वहीं हिंदी फिल्में राज कपूर, रजनीकांत, अमिताभ बच्चन जैसे महानायकों के कारण एशिया, पूर्वी यूरोप में प्रसिद्ध हो चुकी है। जिन हिंदी फिल्मों के बारे में यहां बात की जा रही है, उसमें हिंदी के साथ उर्दू का बे-मालूम मिश्रण है। कहीं-कहीं हिंदी की अन्य बोलियाँ भी इन फिल्मों में सुनाई देती है। फिल्मों में जहां एक ओर हिंदी को अपना कर देश  की मान-शान के रक्षा का आह्वान किया जाता है, वहीं हिंदी सिनेमा में प्रयुक्त भाषा को लेकर समय-समय पर काफी बवाल उठता नजर आता है। जब अमेरिका के राष्ट्रपति  ओबामा अमेरिकी नागरिकों को जल्दी हिंदी सीखने के लिए उद्युक्त करते है, कि कही भारतीय हिंदी भाषा के सहारे आगे न बढ जाए। वहीं हिंदी प्रेमियों में यह डर उभर रहा है कि कही हिंदी फिल्मों में, जो कभी-कभी नाम मात्र की हिंदी फिल्म कहलायी जाती है, उनसे धीरे-धीरे हिंदी भाषा ही नदारत न हो जाए। यहां फिल्मों से शुद्ध हिंदी के प्रयोग की भी उम्मीद नहीं की जा रही है, कि जिसमें अन्य किसी भाषा या बोली के शब्दों का स्थान ही न हो। संभवतः ऐसी फिल्में दर्शकों के निरस या हास्यास्पद होंगी। किंतु इन फिल्मों में अन्य बोलियों या भाषाओं का मिश्रण भी दर्शकों के लिए कभी-कभी पहेली-सा बन जाता है।
हिंदी फिल्मों में हिंदी के अलावा हो रहे अन्य भाषिक  प्रयोग कितने सही और कितने असमंजस में डालने वाले है, इस आलेख के द्वारा स्पष्ट करने की कोशिश  की जा रही है। 1998 में मणिरत्नम द्वारा दिग्दर्शित फिल्म 'दिल से' में एक गीत 'दिया जले, जान जले' में की कुछ पंक्तियों के अर्थ ढूंढने के लिए हमें इंटरनेट या दक्षिण भाषा के जानकार की ही आवष्यकता पडती है। जिसके अनुसार प्रारंभिक हिंदी की पंक्तियों के बाद का स्वर ही बदल जाता है -
दिया जले, जान जले / नैनों तले धुवां जले
punchiri thanu kochiko
munthiri mutham chinthiko
manchani varna sundari vave
thankinaka thaqkadhimi aadum
thankanilave oye -2
thanka kolusale
koorlakum kuyilalae
aadana mayilalae -2
 2009 में प्रदर्शित 'अजब प्रेम की गजब कहानी’ फिल्म का गीत 'तेरा होने लगा हूं’ की प्रारंभिक पंक्तियां अंग्रेजी भाषा  की है। इस भाषिक प्रयोग के होने का कारण ही पता नहीं चलता । जैसे -
Shining in the shade in sun like
a pearl upon the ocean
come & feel me… girl feel me
thinking about the lovemaking
& life sharing come & feel me… girl feel me
 अभी कुछ दिनों पहले ही भारतीय सामाजिक समस्याओं पर आधारित फिल्म 'बत्ती गुल मीटर चालू’ रिलीज हुई। जिसके ’गोल्ड तांबा’ गीत की कुछ पंक्तियां यहां उद्धृत की गई है।
when you getting gold why go for tamba
         लाटे को करदे टाटा करके बहाना
         बेबी कलयुग है ऐनटी-हीरो का जमाना
        when you getting  गब्बर why go for   साम्भा अरे
भाषा  की यह खिचडी पूरे गीत में चलती रहती है। जिसके निश्चित  ही गीत मात्र मनोरंजन या हास्य का पात्र बन जाता है। यहां गीतों की रसात्मता तो पुरी तरह से ही गायब है।
 द्रविडी भाषा , अंग्रेजी भाषा के अलावा तो हिंदी फिल्मों में अन्य देसी भाषा का मिश्रण बडी खूबी के साथ किया गया है। जहां अंग्रेजी के शब्द ऐसे प्रयोग किए जाते है, जैसे इनके बिना काम ही नहीं चलेगा। ’रॉय’ फिल्म का निम्न गीत इसका उदाहरण है -
                  तू लेया दे मेनू गोल्डन झुमके... /   मन जा वे मैनु शॉपिग करा दे
                  मन जा वे रोमांटिक पिक्चर दिखा दे   /  रिक्विस्टा पाइआं वे

2000 में प्रदर्षित कश्मीर  के आतंकवाद की समस्या पर आधारित फिल्म ’मिशन कश्मीर’, के गीत हिंदी के साथ कश्मीरी प्रांतीयता के रंगों में ढंले हुए है। वहां की परंपराओं को गीतों की कुछ पंक्तियों में बडी खूबी के साथ बांधने की कोशिश गीतकार ने की है। जैसे -
               बुमरो बुमरो शाम रंग बुमरो /   आए हो किस बगिया से तुम
यहां बुमरो का अर्थ भौंरे से है। इसी फिल्म का दूसरा गीत -
              रिद पोषमाल गिंदने द्राये लो लो
              सरगम के मीठे-मीठे सुर घोलो

 इसकी पहली पंक्ति का अर्थ है ’आओ मिलकर वसंत ऋतु का स्वागत करते है।’ किंतु 1998 में आई फिल्म ’गुलाम’ और 2003 में प्रदर्षित फिल्म ’मुन्नाभाई एमबीबीएस’ ने भाषा  संबंधी कई नियमों को ही उलझा कर रख दिया। इन फिल्मों के संवाद और गीतों में आमतौर पर अलग पहचान बन चुकी 'बंबईया भाषा ’ की झलक देखने के लिए मिलती है। इन फिल्मों के टपोरी भाषा  में ढले गीतों के कुछ उदाहरण निम्न तरह से है -
               ऐ , क्या बोलती तू ? / ऐ , क्या मैं बोलूं
               सुन .... सुना .... आती क्या खंडाला ?

 इन जैसे गीतों पर तत्कालीन समय में समाज को बिगाडने के भी आरोप लगे। पर इस से ज्यादा हिंदी का भ्रष्ट  रूप मुन्नाभाई एमबीबीएस’ ने दिखाया। जिसके नायक के मुख से 'बोले तो’, 'ऐ मामू’, 'आपुनकी’, 'चिरकुट’, 'मंगताए’ जैसे शब्द हर किसी की जुबान पर चढ गए। इसका गीत 'एम बोले तो’ की कुछ पंक्तियां निम्न  तरह है।-
                 हे.........  मेरी डिग्री ए 1 ढासू बडी  /   ऐ क्या बोला
                मेरी दुल्हन बनेगी सोनी कुडी  /   अरे वा क्या बोला रे....
                हर तरफ लव्ह का माहौल होंगा  /   दिल का धड़कन पर कंट्रोल होंगा

2013 में आयी फिल्म ’चैन्नई एक्सप्रेस’ में अनोखा भाषिक  प्रयोग देखा गया। जहां निर्माता के द्वारा हिंदी और तमिल भाषा की ऐसी मिलावट की गई, कि दावे के साथ कहा जा सकता है कि इस फिल्म को न तो पूरी तरह से हिंदी भाषिक समझ पाएँ होंगे न तमिल भाषिक।
 प्रांतीय भाषाओं ने भी हिंदी फिल्मों पर काफी प्रभाव डाला। जिसके चलते देसी भाषा के कई वाक्य प्रचार या शब्द  हिंदी फिल्मों में आ गए। जिसने प्रांतीयता के हल्के-हल्के रस के छींटों की मानों बौछार-सी कर दी। 2012 की हिंदी फिल्म इंग्लिष-विंग्लिष के एक गाने के प्रसंग में मराठी पारंपरिक गीत का मुखडा गाने में नया रंग-सा भर देता है।
                                   नवराई माझी लाडाची लाडाची गं
                                   आवड हीला चंद्राची चंद्राची गं

आज की फिल्मों के मिश्रित अवतार भरे गीतों को देखते हुए अनायास मन इनकी तुलना अन्य कुछ गीतों से करता है। 1972 की फिल्म पाक़ीज़ा का गीत - ’इन्हीं लोगों ने ले लिया दुपट्टा मेरा’ हिंदी भाषा का सर्वसामान्य शब्दों से भरा किंतु भाव गीत महसूस होता है।
1960 में प्रदर्षित फिल्म ’मुगल ए आझम’ फिल्म का गीत - ’मोहे पनघट पर नंद लाल छोड गयो रे’ , 2002 की फिल्म ’देवदास’ के गीत ’काहे छोडे मोहे नंदलाल’ समान प्रतीत होता है। जिसमें भावों के अनुकूल हिंदी की क्षेत्रीय बोली यों को स्थान दिया गया है। इसी तरह 2012 की फिल्म ’पानसिंग तोमर’ बुंदेलखंडी बोली पर, काय पो छे’ यह 2013 की गुजराती भाषा मिश्रित फिल्म, 2015 की ’तनू वेड्स मनू’ और 2016 की ’दंगल’ हरियाणी बोली पर, इसी साल प्रदर्शित  फिल्म ’उडता पंजाब’ में हिंदी-पंजाबी का मिश्रण देखा जा सकता है। 

सारांश -
हिंदी फिल्मों में प्रांतीय और विदेशी भाषाओं का मिश्रण नयी बात नहीं है। किंतु यह मिश्रण अगर इन फिल्मों की नींव रही हिंदी भाषा पर ही हावी होने लगा, तो यह सोचने वाली स्थिति होंगी की फिल्मों में हिंदी भाषा का स्थान हो रहा है। हिंदी न केवल हमारी भाषिक अस्मिता का प्रतीक है, बल्कि वह हमारे देश के संवाद, गौरव, अतीत और भविष्य के लिए हमारे देश की प्रतिनिधी भाषा है। इस कारण हिंदी फिल्मों में भी हिंदी का स्थान सम्मान पूर्ण ही होना चाहिए।

संदर्भ -
1.  समय, सिनेमा और इतिहास - हिंदी सिनेमा के सौ साल - संजीव श्रीवास्तव
2.  हिंदी सिनेमा के 150 सितारे - विनोद विप्लवे
3.  भारतीय सिनेमा का इतिहास - Maps Of India
4.  भारतीय सिनेमा के 100 साल - आज तक, 9 मई 2012

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