डॉ. मिथिलेश कुमारी का द्वारा रचित प्रस्तुत उपन्यास में संस्कृत विद्वान और सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडितराज जगन्नाथ और उनकी प्रेमिका लवंगी के
शाश्वत प्रेम को मुगलिया शासन के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया है। इसमें इतिहास और कल्पना का
संगम तत्कालीन परिवेश की जीवंतता के साथ देखा जा सकता है। यहाँ प्रस्तुत उपन्यास की कथा को संक्षेप में देने का प्रयास है।
लवंगी उपन्यास की संक्षिप्त कथा
प्रस्तुत उपन्यास का काल मुगल बादशाह शाहजहां का है। जिसकी समन्वयवादी नीति के चलते देश में शांति का माहौल स्थापित हुआ। सम्राट की कलाप्रियता ने साहित्य और
संस्कृत भाषा के लिए स्वर्णिम दिन ला
दिए थे। विशेषता दक्षिणावर्त के विद्वान व्याकरण एवं वेदांत शास्त्र की
प्रज्ञा से संपूर्ण देश को चमत्कृत कर
रहे थे। उस वक्त संस्कृत में रुचि ले रहा शाहजहाँ पुत्र दाराशिकोह को
विद्या निष्णांत बनाने का
कार्यभार दाक्षिणात्त्य विद्वान जगन्नाथ तैलंग को सौंपा गया था। शाहजहाँ भी
इस देश के आत्मबोध हेतु संस्कृत ज्ञान को आवश्यक मानता था। जगन्नाथ समांतर रूप से अरबी-फारसी का ज्ञान लेते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचा था
कि संस्कृत ही सभी शब्दों की जननी है।
दारा शिकोह के
हरम में जगन्नाथ एक
यवन सुंदरी को देखता है, जो संस्कृत पांडुलिपि का स्वाध्याय कर रही थी। संस्कारवान ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर बालब्रह्मचारी बना जगन्नाथ शुष्क अध्ययन-अध्यापन से नीरस बन चुका था। जगन्नाथ नारी को नर्क का द्वार मानता था। पर लवंगी की संस्कृत व्याकरण सिद्धता के कारण जगन्नाथ और स्वयं लवंगी एक दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं। जगन्नाथ अपने प्रणय को आत्मा का आदेश मानते हैं, जो देश, जाति, वर्ण से
ऊपर है।अपने प्रेम को वह लक्ष्य प्रदान करते हैं, जिसके चलते वे
संस्कृत साहित्य का भंडार भर सके।किंतु दारा शिकोह लवंगी को अपनी तीसरी बेगम बनाना चाहता था।
जगन्नाथ के अतीत की और उपन्यास की कथा मुड़ती है। पेरू भट्ट पत्नी की मृत्यु के
उपरांत अपना गांव छोड़ सदा के लिए काशी आते हैं।जहां अपने पुत्र जगन्नाथ को वे स्वयं वेद-वेदांत पढ़ाते हैं। अतः श्रेष्ठ अग्निहोत्र ब्राह्मण जगन्नाथ का
म्लेच्छ मुगलवंशी लवंगी से परिणय कट्टरपंथी स्वीकार नहीं करेंगे, यह जानकारी भी जगन्नाथ लवंगी के संस्कृत अनुराग को प्राधान्य देते हैं। शाहजहां के
ससुर आसिफ खान जगन्नाथ के पांडित्य का
लोहा मान चुके थे,
जो कई अरबी-फारसी के विद्वानों को
दरबारे-आम में पराजित कर चुके थे।
जयपुर नरेश जगतसिंह की राज्यसभा में भी जगन्नाथ अपनी विद्वत्ता सिद्ध कर चुके थे। आदि के चलते जगन्नाथ शाहजहां की सेवा में शिक्षा हेतु कार्यभार संभालते हैं और शाहजहां उनकी निवास व्यवस्था शाही हरम में करवाते हैं। भोजनालय में भी संस्कृत निशांत ब्राह्मण उनकी सेवा में थे; देशी-विदेशी विद्या व्यासंगियों से उनकी भेंट होती। पर जब दारा शिकोह और रुखसाना के विवाह की बात जगन्नाथ के कानों पर पड़ती है, तो वह अस्वस्थ हो जाता है। जबकि शाहजहां से लेकर मुल्ला-मौलवी फिर भी इस रिश्ते के खिलाफ थे।
जयपुर नरेश जगतसिंह की राज्यसभा में भी जगन्नाथ अपनी विद्वत्ता सिद्ध कर चुके थे। आदि के चलते जगन्नाथ शाहजहां की सेवा में शिक्षा हेतु कार्यभार संभालते हैं और शाहजहां उनकी निवास व्यवस्था शाही हरम में करवाते हैं। भोजनालय में भी संस्कृत निशांत ब्राह्मण उनकी सेवा में थे; देशी-विदेशी विद्या व्यासंगियों से उनकी भेंट होती। पर जब दारा शिकोह और रुखसाना के विवाह की बात जगन्नाथ के कानों पर पड़ती है, तो वह अस्वस्थ हो जाता है। जबकि शाहजहां से लेकर मुल्ला-मौलवी फिर भी इस रिश्ते के खिलाफ थे।
जगन्नाथ की संस्कृत के साथ अरबी-फारसी भाषाओं पर
वर्चस्व, वेद ज्ञान से
अन्य धार्मिक ग्रंथों के
ज्ञान में उनकी पैठ अलग-अलग चर्चाओं से
उजागर हो रही थी। विवाह तय होने पर
जगन्नाथ लवंगी के प्रति कुछ विरक्त भाव दर्शाते हैं।तो
इधर लवंगी पर शाही हरम में कई
बंधन लगाए जाते हैं। इस बीच अपने प्रेमी को अन्य युवती के साथ देखकर लवंगी अचेत हो
जाती है। रुखसाना का
सच्चा स्नेह देखकर जगन्नाथ भी ठान लेते हैं कि
वे शाहजहां से बात करेंगे। इसी के
तहत वे साफ तौर पर रुखसाना को
अपनी जीवनसंगिनी बनाने की इच्छा रखते हैं। किंतु इसे सुनकर लगभग सभी चौंकते है। शाही इमाम भी इसका विरोध करते हुए इसे मजहबी ख्यालात में संगीन जुर्म मानते हैं, जो
तैमूरलंग के खानदान की तौहीन करेगा। पर शाहजहां किसी के मशवरे को
ना मानते हुए जगन्नाथ पर मजहब बदलने की ताकत भी
न देते हुए उनकी इच्छा को पूर्ण करते हैं।
शाहजहां के इस निर्णय के विरुद्ध शाही इमाम और दाक्षिणात्त्य ब्रज प्रदेश के आचार्य गण रुष्ट हो जाते हैं। तो कुछ विद्वान जगन्नाथ का साथ दें अपने को गौरवान्वित मानते हैं, तो जगन्नाथ को धर्म बहिष्कृत करने की कुछ लोग मांग रखते हैं। मात्र दारा शिकोह अपने गुरु का आदर कर विद्रोहीयों का साथ नहीं देते हैं।शाही ढंग से यह परिणय होता है। इस्लाम के विधि से निकाह भी होता है। विरोध दर्शाने वाले पंडित और शाही इमाम को दारा अपने हिसाब से समझाता है। मात्र जनता में व्याप्त आक्रोश शांत न हो सका और इसकी चर्चा औरंगजेब के कानों तक पहुंची। युवराज पद से वंचित हो मौके की राह देखने वाले औरंगजेब ने विवाह की बात सुन विद्रोह की धमकी दी और स्वयं को युवराज घोषित कर लाहौर को राजधानी बना आगे वह स्वयं को बादशाहा घोषित कर बैठा। ऐसे में वजीर ए आलम आसिफ खान ने सुरक्षा के प्रबंध कर अधिकांश हिंदू राजाओं का समर्थन प्राप्त किया। आसिफ खान के सेनापतित्व से औरंगजेब को पेशावर भागना पड़ा और जगन्नाथ और रुखसाना को शाहजहां का संरक्षण प्राप्त हुआ ।
शाहजहां के इस निर्णय के विरुद्ध शाही इमाम और दाक्षिणात्त्य ब्रज प्रदेश के आचार्य गण रुष्ट हो जाते हैं। तो कुछ विद्वान जगन्नाथ का साथ दें अपने को गौरवान्वित मानते हैं, तो जगन्नाथ को धर्म बहिष्कृत करने की कुछ लोग मांग रखते हैं। मात्र दारा शिकोह अपने गुरु का आदर कर विद्रोहीयों का साथ नहीं देते हैं।शाही ढंग से यह परिणय होता है। इस्लाम के विधि से निकाह भी होता है। विरोध दर्शाने वाले पंडित और शाही इमाम को दारा अपने हिसाब से समझाता है। मात्र जनता में व्याप्त आक्रोश शांत न हो सका और इसकी चर्चा औरंगजेब के कानों तक पहुंची। युवराज पद से वंचित हो मौके की राह देखने वाले औरंगजेब ने विवाह की बात सुन विद्रोह की धमकी दी और स्वयं को युवराज घोषित कर लाहौर को राजधानी बना आगे वह स्वयं को बादशाहा घोषित कर बैठा। ऐसे में वजीर ए आलम आसिफ खान ने सुरक्षा के प्रबंध कर अधिकांश हिंदू राजाओं का समर्थन प्राप्त किया। आसिफ खान के सेनापतित्व से औरंगजेब को पेशावर भागना पड़ा और जगन्नाथ और रुखसाना को शाहजहां का संरक्षण प्राप्त हुआ ।
वैवाहिक होकर भी
जगन्नाथ-लवंगी वासनात्मक शारीरिक भाव से अलिप्त थे। उनके लिए ज्ञान का
आदान-प्रदान ही मुख्य था। जगन्नाथ लवंगी के लिए लालायित रहते थे,
पर उन में कामुकता नहीं थी। जगन्नाथ का
संयम जब डावाडोल होता तो लवंगी अपने विरक्ति द्वारा उसे बचा लेती हैं।
मुमताज की मृत्यु पर शोकग्रस्त शाहजहां को जगन्नाथ धाडस बंधाता है। शाहजहां का जगन्नाथ के
प्रति हार्दिक स्नेह देख लवंगी भी गदगद होती है। दोनों में मनमुटाव के
क्षण भी आते पर
वह उनके दांपत्य जीवन को पुष्ट करते। लवंगी द्वारा जगन्नाथ की पांडुलिपि में अग्रिम पंक्तियों को लिखा देख जगन्नाथ के मन
में लवंगी के लिए अपार निष्ठा का
सूत्रपात हुआ। तीन-चार माह में ही
जगन्नाथ लवंगी को व्याकरण साहित्य में निष्णात कर देते हैं। जयपुर नरेश जगतसिंह जगन्नाथ को
विद्वान मंडली में आमंत्रित करने स्वयं पधारते हैं।एक मुगल कन्या के साथ वैवाहिक संबंध जिस कटु आलोचना का विषय बन चुका था,,
उसी के निराकरण-स्पष्टीकरण हेतु जयपुर में यह सभा थी। किंतु इस सभा के
द्वारा समाज कोई विषवमन करेंगा, यही सोचकर लवंगी भयभीत थी। पर जगन्नाथ इस वास्तव को समझ रहा था कि लाल किले की
शांति सदैव नहीं रहेंगी। क्योंकि औरंगजेब शाहजहां की बीमारी के
बाद सक्रिय हो रहा है।अतः उनका दिल्ली रहना अधिक सुरक्षित नहीं।
दिल्ली से निकले जगन्नाथ के स्वागत हेतु अलवर नरेश दिग्विजय सिंह स्वयं आकर उन्हें अपने राजभवन लाते हैं, जहां राजवंश की महिलाएं लवंगी के पांडित्य की
सराहना करती है। भरतपुर मेड़ता के राजभवन में भी जगन्नाथ और लवंगी का
स्वागत होता है। क्षत्रिय संस्कारों से पूर्ण पठान शेरु को
हिंदू धर्म में दीक्षित कर उसका विवाह निसा के साथ वैदिक विधि से
जगन्नाथ द्वारा संपन्न किया जाता है।
मेड़ता में लवंगी की अमृतवाणी में श्री कृष्ण गाथा विवेचन सुन वहां का विद्वजन उसे ब्राह्मण कुल की विदुषी वधू स्वीकार करता है। किंतु जयपुर आने के पश्चात लवंगी स्पष्ट रूप से समझती है कि राजकुमारी ललिता जगन्नाथ पर डोरे डाल रही है। ललिता के सौंदर्य पर रीझ कर जगन्नाथ 'भामिनी विलास' के अंतिम अध्याय में लगे थे। पर जगन्नाथ ललिता को काव्य आधार के रूप में ही स्वीकारते हैं, वासना पूर्ति के रूप में नहीं। इतना ही नहीं बार-बार ललिता को इस बात का भी अहसास कराते हैं कि वह राजकुल की दूहीता है। लवंगी के प्रति अपने आदर युक्त प्रेम को वह व्यक्त करता है, क्योंकि लवंगी ने उसके ब्रह्मचर्य को भंग होने से बचाया। ललिता को वह मार्गदर्शिका के रूप में देखता है। किंतु लवंगी पति को अपनी ओर से विमुख पा कृष्ण भक्ति में स्वयं को डुबाने की चेष्टा करती है। इसी बीच जयपुर नरेश जगन्नाथ को अपना राजगुरु बनाते हैं और जयपुर के विद्वान परिषद का कार्य सौंपते हैं।
ललिता को लेकर इस दांपत्य में कलह होता है। मात्र क्षमा मनोहार द्वारा वे सामान्य हो जाते हैं।जगन्नाथ को ललिता की ओर आकृष्ट देख लवंगी तय कर लेती है कि वह अपने उस रूप को प्रदर्शित करेंगी, जिसे लज्जा वश सीमा में बांधे थी। निशा लवंगी के कक्ष में ह्रदय आकर्षित चित्र अंकित करती है, जो श्रृंगार रस में डूबे थे। इसी हेतु संगीत का कार्यक्रम भी वहां आधी रात तक अनवरत रूप में चलता है। पर पंडितराज इससे अनभिज्ञ थे, क्योंकि द्वैत-अद्वैत, विशिष्टा द्वैतवाद पर हो रहे शास्त्रार्थ गोष्ठी की वे अध्यक्षता कर रहे थे। किंतु गोष्टी के अंत में जगन्नाथ के यवनी संसर्ग से दूषित होने की बात उठते ही उनके भवन के विषय भोग चित्रों का उल्लेख भी किया जाता है। भवन के चित्रों को प्रत्यक्ष देखने पर जगन्नाथ अपने प्रिया के विविध रूपों की कल्पना से हर्ष विभोर हो गए; वहीं अपने कारण पति के हुए अपमान से लवंगी अपने आप को धिक्कारने लगी।
मेड़ता में लवंगी की अमृतवाणी में श्री कृष्ण गाथा विवेचन सुन वहां का विद्वजन उसे ब्राह्मण कुल की विदुषी वधू स्वीकार करता है। किंतु जयपुर आने के पश्चात लवंगी स्पष्ट रूप से समझती है कि राजकुमारी ललिता जगन्नाथ पर डोरे डाल रही है। ललिता के सौंदर्य पर रीझ कर जगन्नाथ 'भामिनी विलास' के अंतिम अध्याय में लगे थे। पर जगन्नाथ ललिता को काव्य आधार के रूप में ही स्वीकारते हैं, वासना पूर्ति के रूप में नहीं। इतना ही नहीं बार-बार ललिता को इस बात का भी अहसास कराते हैं कि वह राजकुल की दूहीता है। लवंगी के प्रति अपने आदर युक्त प्रेम को वह व्यक्त करता है, क्योंकि लवंगी ने उसके ब्रह्मचर्य को भंग होने से बचाया। ललिता को वह मार्गदर्शिका के रूप में देखता है। किंतु लवंगी पति को अपनी ओर से विमुख पा कृष्ण भक्ति में स्वयं को डुबाने की चेष्टा करती है। इसी बीच जयपुर नरेश जगन्नाथ को अपना राजगुरु बनाते हैं और जयपुर के विद्वान परिषद का कार्य सौंपते हैं।
ललिता को लेकर इस दांपत्य में कलह होता है। मात्र क्षमा मनोहार द्वारा वे सामान्य हो जाते हैं।जगन्नाथ को ललिता की ओर आकृष्ट देख लवंगी तय कर लेती है कि वह अपने उस रूप को प्रदर्शित करेंगी, जिसे लज्जा वश सीमा में बांधे थी। निशा लवंगी के कक्ष में ह्रदय आकर्षित चित्र अंकित करती है, जो श्रृंगार रस में डूबे थे। इसी हेतु संगीत का कार्यक्रम भी वहां आधी रात तक अनवरत रूप में चलता है। पर पंडितराज इससे अनभिज्ञ थे, क्योंकि द्वैत-अद्वैत, विशिष्टा द्वैतवाद पर हो रहे शास्त्रार्थ गोष्ठी की वे अध्यक्षता कर रहे थे। किंतु गोष्टी के अंत में जगन्नाथ के यवनी संसर्ग से दूषित होने की बात उठते ही उनके भवन के विषय भोग चित्रों का उल्लेख भी किया जाता है। भवन के चित्रों को प्रत्यक्ष देखने पर जगन्नाथ अपने प्रिया के विविध रूपों की कल्पना से हर्ष विभोर हो गए; वहीं अपने कारण पति के हुए अपमान से लवंगी अपने आप को धिक्कारने लगी।
लवंगी की मातृत्व प्राप्ति की
इच्छा को देख जगन्नाथ अपने काव्य को
ही अमर संतान घोषित करते हैं और लवंगी को उस उद्देश्य का पुण्य स्मरण कराते हैं जिसके लिए वह
देह आकर्षण से दूर रहे हैं। इधर औरंगजेब के दिल्ली पर अधिकार करने एवं दारा शिकोह की मृत्यु के
बाद जगन्नाथ को जयपुर छोड़ अन्यत्र जाने का विचार आता है। जयपुर नरेश जगत सिंह को
पदच्यूत कर जयसिंह सिंहासनास्त होते हैं। अतः जगन्नाथ लवंगी छद्म वेश में जयपुर से बाहर निकलते हैं। पर जगन्नाथ से असंतुष्ट कुछ मुल्ला-मौलवी और
पंडित-पुजारियों के विषवमन से मुगल सेना की टुकड़ी जगन्नाथ को बंदी बनवाने निकलती है। तत्पुर्व सभी यमुना पार कर
गऊ घाट आते हैं। वहां भी जगन्नाथ ज्ञान धारा और
रस धारा प्रवाहित कर
भक्तों के मन को
तृप्त करते हैं। किंतु लवंगी को लेकर वितण्डन होता रहता है। कुछ वैष्णव लवंगी को म्लेच्छ कह वल्लभ आश्रम की मर्यादा के
नष्ट होने की बात करते हैं, किंतु जन आग्रह के कारण जगन्नाथ सपत्नी तीन माह वहां रुककर वृंदावन आते हैं।
जयपुर में राजकुमारी ललिता का विवाह जबरदस्ती किसी राजपूत घराने में किया जाता है। ललिता के सहज सहमत न होने पर जगन्नाथ के
नाम पर उस पर
कलंक लगाया जाता है। इससे उद्विग्न हो ललिता विषपान कर आत्महत्या कर लेती है। मुगल सेना की जगन्नाथ की खोज को
देखते हुए जगन्नाथ पुनः वृंदावन छोड़ अयोध्या की ओर चल
पड़ते हैं। अयोध्या के
सरयू तट पर जगन्नाथ के राम भक्ति में डूबे प्रवचन होते हैं।इस
बीच अवध के नवाब शुजाउद्दौला के निमंत्रण पर जगन्नाथ फैजाबाद आकर रोजा-इफ्तार के जश्न में शामिल होते हैं।
जगन्नाथ से प्रभावित नवाब लवंगी की वाग्विदग्धता से भी प्रभावित होता है। पर फैजाबाद की मुस्लिम सभा में जगन्नाथ के व्याख्यान की चर्चा सुन अयोध्या के कट्टर रामभक्त उनके विरोधी हो जाते हैं।यह देख जगन्नाथ काशी जाने का निर्णय लेते हैं। बीच राह में वे संत कबीर के अखाड़े में रुकते हैं। वहां के उनके सत्संग से जगन्नाथ ग्रामीण क्षेत्र में जनप्रिय हो जाते हैं। पंडित राज के प्रवचन से काशीवासी भी प्रभावित होते हैं। लवंगी से प्रेरणा पाकर जगन्नाथ 'गंगा लहरी' की रचना में निमग्न हो जाते हैं।
जन सामान्य में जैसे-जैसे वे लोकप्रिय होते हैं, वैसे वैसे दाक्षिणात्त्य अपनी कटू टिप्पणियों से उनके विरुद्ध विषवमन कर उन्हें बहिष्कृत कर नगरी से बाहर निकालने की चेष्टा करते है। अतः जगन्नाथ तैलंग देश में निवास करने की योजना बनाते हैं।पर तत्पूर्व पंचगंगा घाट पर गंगा स्नान हेतु आई लवंगी को एक जलचर खींचता हुआ गहरे में ले जाता है। उसे बचाने पानी में डूबे जगन्नाथ भी लवंगी के साथ गंगा में डूब जाते हैं। अंत में गुरुदेव और गुरु माता की प्रतीक्षा करता ब्रह्मदेव अंर्तचेतना से पंडित राज के ग्रंथों को लेकर वृंदावन आता है और वहीं से उन ग्रंथों का प्रचार प्रसार करता है ।
जगन्नाथ से प्रभावित नवाब लवंगी की वाग्विदग्धता से भी प्रभावित होता है। पर फैजाबाद की मुस्लिम सभा में जगन्नाथ के व्याख्यान की चर्चा सुन अयोध्या के कट्टर रामभक्त उनके विरोधी हो जाते हैं।यह देख जगन्नाथ काशी जाने का निर्णय लेते हैं। बीच राह में वे संत कबीर के अखाड़े में रुकते हैं। वहां के उनके सत्संग से जगन्नाथ ग्रामीण क्षेत्र में जनप्रिय हो जाते हैं। पंडित राज के प्रवचन से काशीवासी भी प्रभावित होते हैं। लवंगी से प्रेरणा पाकर जगन्नाथ 'गंगा लहरी' की रचना में निमग्न हो जाते हैं।
जन सामान्य में जैसे-जैसे वे लोकप्रिय होते हैं, वैसे वैसे दाक्षिणात्त्य अपनी कटू टिप्पणियों से उनके विरुद्ध विषवमन कर उन्हें बहिष्कृत कर नगरी से बाहर निकालने की चेष्टा करते है। अतः जगन्नाथ तैलंग देश में निवास करने की योजना बनाते हैं।पर तत्पूर्व पंचगंगा घाट पर गंगा स्नान हेतु आई लवंगी को एक जलचर खींचता हुआ गहरे में ले जाता है। उसे बचाने पानी में डूबे जगन्नाथ भी लवंगी के साथ गंगा में डूब जाते हैं। अंत में गुरुदेव और गुरु माता की प्रतीक्षा करता ब्रह्मदेव अंर्तचेतना से पंडित राज के ग्रंथों को लेकर वृंदावन आता है और वहीं से उन ग्रंथों का प्रचार प्रसार करता है ।
लवंगी उपन्यास के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य -
- मात्र 25 वर्ष की अवस्था में जगन्नाथ का संस्कृत आदि भाषाओं में विद्वत्ता प्राप्त करना। अपने शास्त्रार्थ से विद्वानों को पराजित कर शाहजहां से 'पंडित राज' उपाधि पाना।
- जगन्नाथ अपने प्रेम को देह जनित नहीं, आत्मा का आदेश मानता है। जहां देश, जाति, वर्ण महत्वपूर्ण नहीं। अपने इस आत्मानुबंधन को वे आदर्श उन्मुख लक्ष्य प्रदान करते हैं। जिसके चलते संस्कृत साहित्य का भंडार भर सके।
- जगन्नाथ प्रेम को अत्यंत व्यापक मानते हैं। जो वस्तुतः भक्ति-अनुरक्ति का भी पर्याय है। वे जयपुर की राजकुमारी ललिता से कहते हैं- ''प्रेम शरीर नहीं, अपितु आत्मा का सरस स्फुरण है। जो यद्यपि आसक्ति से परे रहता है, दान-प्रतिदान की उपेक्षा करता है तथा स्वार्थ भाव से मुक्त होता है।'' - पृष्ठ 17
- जगन्नाथ की विद्वत्ता को जानकर संस्कृत अध्ययन हेतु उसके पास उच्च लोगों का आवागमन था। रुखसाना- जिसे शाहजहां बेटी समान मानता था, जयपुर की राजकुमारी ललिता उससे ज्ञानार्जन कर रही थी। वजीर आसफ खान भी अपनी बेटी हमीदा बानो को पंडितराज से संस्कृत सीखने की इजाजत देते हैं। पर उसकी मां नहीं चाहती थी कि ''उनकी बेटी एक जवान हिंदू पंडित के सामने मुंह खोलकर बैठे।'' वह अपने कट्टरता के चलते मूर्तिपूजकों को घृणा का पात्र मानती थी।
- स्त्री स्वभाव का प्रतीक है -रुखसाना। जगन्नाथ को अपने प्रति विरक्त देख वह कई कयास लगाती है। वह सोचती है पंडितराज जैसे सह्रदय रसिक का मन वजीरे आला की बेटी हमीदा बानो पर आ सकता है, जो अनिंद्य सुंदरी है।
- जगन्नाथ द्वारा रुखसाना को पत्नी रूप में मांगने पर प्रतिक्रिया स्वरूप कई तरह के तर्क सामने आते हैं।मुगलिया खानदान की इज्जत को एक काफिर को सौंपना या इस देश के ब्राह्मण जिसे यवन या म्लेच्छ कहते हैं उसके कारण 'संस्कारवान विद्वान कैसे बचेगा ?' आदि कई तर्क उठाए जाते हैं। शाही इमाम तो इसे मजहबी ख्यालात में संगीन जुर्म मान तैमूरलंग के खानदान की तौहीन कहते हैं। पर वे यह भूल जाते हैं शाहजहां के पिता रानी जोधा बाई की कोख से पैदा हुए थे। अतः शाहजहां अपना वादा पूरा करते हैं।इतना ही नहीं जब मुसलमानों को खिलाफ जाने से रोकने के लिए पंडितराज को मुसलमान बनाने की बात उठती है, तो शाहजहां यह साफ करता है कि वह किसी को अपना मजहब बदलने के लिए मजबूर नहीं करेंगे। पर ब्राह्मण होकर यवन संसर्ग को कलिकाल का प्रभाव मानने वाले भी कम थे।
- शास्त्रों की यह मान्यता भी विद्वानों में थी कि ''कन्या किसी भी देश, जाति, धर्म की हो विवाह होने पर उसे पति कुल की संज्ञा प्राप्त होती है'।'
- गुरु के प्रति आदर इसलिए दारा रुखसाना जगन्नाथ के विवाह का विरोध नहीं करता। साथ ही उन्हें विलासी विषयाधं कहने वाले पंडित जी को चेतावनी देता है। तो नायब इमाम को भी समझा जाता है कि पंडितराज इंसान की शक्ल में फरिश्ता है।
- जगन्नाथ का अपनी पत्नी लवंगी की और देखने का दृष्टिकोण पारंपारिकता से अलग था। वह लवंगी में उस राधा को देखता है जिसके कारण श्री कृष्ण जगद्गुरु तथा लोक नायक बन गए। लवंगी की प्रेरणा से वह भी अपने सपनों को पूर्ण करेंगा। लवंगी को असाधारण देवी मान जगन्नाथ उसके सामने नतमस्तक होता है।
- जहां संपूर्ण हिंदू समाज म्लेच्छों के स्पर्श से दूर रहने की चेष्टा करता, वही जगन्नाथ के सूपकार लवंगी को गुरु पत्नी का सम्मान सहज देते हैं।
- जीवनसंगिनी होने के नाते लवंगी ऐसा कोई आचरण नहीं करना चाहती, जिसके कारण जगन्नाथ का लक्ष्य संकट में आए। अतः पति को वह स्मरण कराती है कि वास्तविक महावीर वह है जो अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रख काम वासनाओं पर विजय प्राप्त करें।
- मुमताज की मौत से जहां सभी शोक में थे, वही दारा शिकोह की बैगमें आंगन में चौसर खेल रही थी।
- स्त्री के प्रति अनन्य आदर का भाव इसलिए हाथ जोड़कर लवंगी के चरणों में लिपट कर जगन्नाथ क्षमा की याचना करता है। वह सही अर्थों में लवंगी को धर्मपत्नी-अर्धांगिनी मानता है । वास्तव में जगन्नाथ लवंगी का का संबंध शिव सती जैसा था, वासना के परे।
- जयपुर नरेश जगत सिंह जगन्नाथ और लवंगी के विवाह के कारण संपूर्ण देश में उठे विद्रोह की चिंगारी का शमन करने स्वयं जयपुर में विद्वान्मंडली का आयोजन करते हैं। क्योंकि वह स्वयं मानते हैं कि जगन्नाथ अपने ज्ञान से भारत वासियों को कृतार्थ करें तथा संस्कृत विद्या का जन-जन में वितरण कर देश का कल्याण करें।
- सार्वजनिक सभा के द्वारा पति को किसी कटुक्ती का सामना न करना पड़े यह सोच लंवगी भगवान से प्रार्थना करती है कि उसके पति का रंचमात्र भी अनिष्ट न हो।
- जगन्नाथ के शिष्य ब्रह्मदेव के संपर्क में आकर शेरू और निसा का भी कायाकल्प हो जाता है। दोनों में देश प्रेम का उदय होता है, जिसके चलते भारत के संतों, अवतारों, तीर्थों के प्रति उनकी श्रद्धा बढ़ती है।
- जगन्नाथ में धार्मिक कट्टरता नहीं थी। इसलिए धर्म परिवर्तन उत्सुक शेरू को वे समझाते हैं कि- ''तुम जिस धर्म में जन्मे हो, वहीं से तुम सेवा-भक्ति के बल पर सुख शांति का जीवन बिता सकते हो।''
- शेरू ढाई वर्ष की उम्र में यतीम बन चुका था। उसके अपने परिवार वाले उसे नहीं अपनाते है । पर दारा के अंगरक्षक ठाकुर रणधीर सिंह इस यतिम पठान बालक की परवरिश कर उसे पढ़ाते हैं। दूसरी और निशा हिंदू परिवार की कन्या थी, जिसे एक मुल्ला ने इस्लाम में दीक्षित कर घर में रख लिया। मुल्ला के बच्चों में बड़ी हुई निशा को मुल्ला अपनी चौथी बीवी बनाना चाहता था। अत: निशा उर्फ मेहरून्निसा वहां से भागती है।
- पत्नी के रूप में लंवगी कि कहीं-कहीं सीमित सोच दिखाई देती है । ललिता की ओ र जगन्नाथ का सहज झुकाव देख वह यही मानकर चलती है कि - "कुछ भी हो वे पुरुष है। उनकी अपनी आकांक्षाएं है। अतः वह कहीं भी किसी के साथ रमन करके खुश रहे, यह उसके लिए हर्ष का विषय है।"- पृष्ठ 92
- धर्म पत्नी के अधिकार का उपयोग कर लवंगी पति की भर्त्सना करना जानती है, तो पति को क्षमा करना भी। ललिता के प्रति जगन्नाथ के सहज आकर्षण बंध को तोड़ने के लिए लवंगी स्वयं उसकी नायिका बनने के लिए तैयार होती है।
- अपने पति को दांपत्य सूत्र में बांधने हेतु लवंगी का मन मातृत्व की ओर उन्मुख होता है। उसके अनुसार मातृत्व ही नारी की सार्थकता है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि उसकी इच्छा पूर्ति भी पति की ओर से अनिवार्य समझी गई है।- पृष्ठ 118
- जुझार सिंह हिंदू होकर भी कृष्ण भक्तों की तलाशी पर अड़ जाता है। तो अफसर हुसैन उसे रोकते हुए - "ठाकुर अब किसी के मजहबी जज्बातों का मजाक मत बनाओ। तुम खुद भी हिंदू हो। चुनांचे इसके रूहानी ख्यालात की कद्र करो। इनकी तलाशी के दौरान तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा। उल्टे इनकी शान में बट्टा लगेगा या इन्हें जो भी तकलीफ होंगी उससे तुम्हारी शख्सियत नापाक समझी जाएंगी ।" - पृष्ठ 134
- ठाकूर द्वारा पंडितराज को गिरफ्तार कर जागीर पाने की मंशा रखने पर खान उसे धिक्कारते हुए स्वयं तलवार निकालता है। पर मंदिर के प्रांगण में रक्तपात ना हो, इसलिए जगन्नाथ स्वयं सम्मुख प्रकट होते हैं।
- औरंगजेब अपनी मां की मृत्यु का समाचार सुन मातम मनाना तो दूर वह मुमताज के मकबरे पर सजदा भी नहीं करता।
- वृंदावन यात्रा के दौरान पंडित राज का व्याख्यान यत्र-तत्र होता है। जिससे मुल्ला-मौलवी, इमाम दिल्ली के शाही इमाम से मिलते हैं। पर वे भी पंडितराज को निर्दोष बताते हुए कहते हैं- "जिस सुल्ताना के रिश्ते से आप सबको गिला है, वह इन दोनों का जिस्मानी नहीं बल्कि रूहानी रिश्ता है।" - पृष्ठ 137
- इमाम औरंगजेब को भी विश्वास दिलाता है कि पंडित राज से हुकूमत को कोई खतरा नहीं।
- फैजाबाद के नवाब शुजाउद्दौला द्वारा रोजा-इफ्तार के जश्न में जगन्नाथ को निमंत्रण देना, वहीं अवध के जाने-माने हिंदू मुसलमान विद्वानों को भी आमंत्रण तत्कालीन धार्मिक सौहार्दतापूर्ण वातावण के प्रतिक बन सामने है।
- कटु वर्तन के बाद भी जगन्नाथ के मन में जुझार सिंह के प्रति आत्मीयता के भाव थे। अतः जुझार भी जगन्नाथ को छोड़ नवाब का अंगरक्षक बनने का प्रस्ताव नकारता है। पर गुरु एवं गुरु पत्नी के आग्रह पर वह नवाब के साथ जाता है। यह वही ठाकुर जुझार सिंह था जो स्वाभिमान व जागीर के लोभ के चलते जगन्नाथ को बंदी बनाने आया था। पर अब उसका स्वार्थ परमार्थ भाव का साधक बन जाता है।
- जगन्नाथ के जीवन का उद्देश्य था - "हम चाहते हैं कि इस पुरातन देश की संस्कृति पर किसी प्रकार की आंच ना आने पाए और ऐसा तभी संभव होगा जब हम उसके मूलभूत सिद्धांतों का प्रचार जन-जन के मध्य करते रहेंगे।" अतः अपनी निंदा देख भी जगन्नाथ संयम नहीं खोते।
- पंडितराज के उदारवादी सिद्धांत से जन वर्ग हर्षित था। क्योंकि वह न तो किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त थे। जगन्नाथ एक ऐसे ब्रह्मज्ञानी थे जो "सर्वे भवंतु सुखिन" सिद्धांत के आधार पर चल रहे थे ।
- जगन्नाथ जहां मानव धर्म का प्रचार कर ईश्वर के प्रति आस्था और भक्ति भाव का संचार कर रहे थे, वहीं काशी जैसे पवित्र धार्मिक क्षेत्र धूर्तों की नगरी में परिवर्तित हो पंडित जगन्नाथ को यवनी संसर्ग से दूषित, कलंकी कह पांडित्य का अहंकार करने वालों की नगरी बन रही थी ।
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